Monday, November 14, 2011

सितारे हो, चांद हो या फिर सुरज हो,


सितारे हो, चांद हो या फिर सुरज हो,
हर पल ये घुमते ही रह्ते है,

चाह्त हो या ना हो मंजिल को पाने कि,
मगर ये मंजिल पाने को तरसते रहते है,

वक्त कि सिडियां चाहे कितनि लम्बी हो जाये,
मागर ये वक्त की नजाकत पे हि ढलते रहते है,

इनके तो दिल भी नहि है हम लोगो जैसा,
मगर ये तो हम जैसो के खतिर तिल तिल के जलते रहते है !!

लेखक ==रोशन धर दुबे
समय ==14 नवम्बर 2011 (सायंकाल 7:45)

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