Monday, November 28, 2011

कोई इस जहाँ मे नहि समझ पाया गम मे डुबे रोशन को,


कोई इस जहाँ मे नहि समझ पाया गम मे डुबे रोशन को,
हर किसि ने दिया हमे खुशि कि चादर मे लपेट के गम को,

जो जीतना भि अपनापन दिखाया हर पल मे,
वो उतना हि लुट गया है इस रोशन को,

जिसने भि दिया एहसास एक पल प्यार का,
उसने हि दिखाया जिन्दगि भर गम का रास्ता हमको,

जिसकि खुशियो के खातिर हमने हजार झूठ बोले,
आज उसने हि मुझे तबाह करने के लिये एक झूठ बोला सबको,

जिसके अरमानो को हमने पंख लगाये,
उसि ने मेरा पंख काट जमीन पे गिरा दिया हमको,

बार बार चोट खाना तो अब इस दिल कि आदत सि हो गयी है,
किसि ने नहि दि रोशनी इस बुझते हुए रोशन को,

जिसके लिये इस रोशन के दिल का दरवाजा खुला रह्ता था हर पल,
आज उसि ने मना कर दिया आने को उसके घर को,

जिसके हाथो मे हाथ डाल बडाते थे कदम जिन्दगी कि,
आज उसि ने हाथ छोड मेरा ढकेल दिया है जिंदगी कि गर्त को,

अकेला पड गया है रोशन और बुझने लगि है रोशनि इसकि,
कोई तो बचा ले गम मे टुटते हुए इस अकेले रोशन को !!

लेखक:रोशन दूबे
लेखन दिनाँक: 28 नवम्बर २०११ (सुबह 9 बजकर 30 मिनट)

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